Wednesday, November 27, 2013

बेटी लाडली होती है सब की, बेटियां सौगात होती है रब की


बेटियां आँगन की महक होती हैं
बेटियां चौंतरे की चहक होती हैं

बेटियां सलीका होती हैं
बेटियां शऊर होती हैं
बेटियों की नज़र उतारनी चाहिए
क्योंकि बेटियां नज़र का नूर होती हैं

इसीलिए
बेटी जब दूर होती हैं बाप से
तो मन भर जाता संताप से

डोली जब उठती है बेटी की
तो पत्थरदिलों के दिल भी टूट जाते हैं
जो कभी नहीं रोता
उसके भी आँसू छूट जाते हैं

बेटियां ख़ुशबू से भरपूर होती हैं
उड़ जाती हैं तब भी सुगन्ध नहीं जाती
क्योंकि बेटियां कपूर होती हैं

बेटी घर की लाज है
बेटी से घर है समाज है
बेटी दो दो आँगन बुहारती है
बेटियां दो दो घर संवारती हैं

बेटी माँ बाप की साँसों का सतत स्पन्दन है
बेटी सेवा की रोली और मर्यादा का चन्दन है
बेटी माँ का दिल है, बाप के दिल की धड़कन है

बेटी लाडली होती है सब की
बेटियां सौगात होती है रब की

बेटे ब्याह होने तक बेटे रहते हैं
लेकिन बेटी आजीवन बेटी रहती हैं

बेटियों की गरिमा पहचानता हूँ
बेटियों का समर्पण मैं जानता हूँ
इसलिए बेटी को मैं पराया नहीं
अपितु अपना मूलधन मानता हूँ

जय हिन्द !
अलबेला खत्री

albela khatri's cute cute grand daughter  yashika khatri with her friend

Tuesday, November 26, 2013

कविताओं की चोरी हो या हो दैहिक गठबन्धन - चलने दो, आवाज़ उठाना महंगा पड़ता है



दिल की बात ज़ुबाँ पर लाना महँगा पड़ता है
लाख के घर में जोत जगाना महंगा पड़ता है



सर से जब लोहू निकला तो बात समझ में आई
दीवारों से सर टकराना महंगा पड़ता है



कविताओं की चोरी हो या हो दैहिक गठबन्धन
चलने दो,  आवाज़ उठाना महंगा पड़ता है



ग़ज़लें गर लिखवाई हैं, तारीखें भी लिखवाओ
शंखधरों को शंख बजाना महंगा पड़ता है 



आम आम की माला जप कर वो जो ख़ास हुआ है
उसको फिर से आम बनाना महंगा पड़ता है 




भैंस के आगे बीन बजाना चल जाता 'अलबेला'
बीन से लेकिन  भैंस बजाना महंगा पड़ता है



जय हिन्द !
अलबेला खत्री 

albela khatri in kavi sammelan at juhari devi girls p g college kanpur on 24-11-13

Friday, November 22, 2013

आम आदमी द्वारा झाड़ू लगाना बुरा नहीं है लेकिन झाड़ू को गलत जगह फंसा लेना बुरा है ...



पुरुष द्वारा नारी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना कोई पाप नहीं है बल्कि एक नैसर्गिक आनंद का अनुभव है,  एक पुरुष द्वारा अनेक महिलाओं के साथ सम्भोग करना भी कोई अपराध नहीं है अपितु उस पुरुष के सौभाग्य और प्रारब्ध का पराक्रम है  परन्तु यही आनंद और पराक्रम  तब पाप की श्रेणी में आ जाता है  जब कोई व्यक्ति संत वेश में  लोगों को बेवकूफ बना कर यह काम करता है जैसे कि आशाराम बापू एंड संस

इसी प्रकार कवि  भी एक  आम आदमी है,  उसे भी भूख प्यास लगती है.…  लिहाज़ा कोई कवि  अगर अपनी कामपिपासा को शान्त करने  के लिए जगह जगह मुंह मारता फिरता है  तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ता, परन्तु  अपने आयोजकों और संयोजकों की  बहन - बेटी अथवा बीवी पर नज़र मैली करना  तो अपराध ही नहीं महापाप है  क्योंकि वहाँ  आप विश्वासघात  कर रहे होते हैं  उस परिवार के साथ भी और पूरी कवि  बिरादरी की साख के साथ भी

ख़ासकर  अमेरिका जैसे देश में जा कर वहाँ के हिन्दी  प्रेमियों और कविता के उपासकों  की भलमानसहत व विनम्र आतिथ्य की परिपाटी के भाल पर अपने दुराचारी और कुत्सित पंजे अंकित करने की कोशिश करना  तो  चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी बात है - भले ही वे मारपीट नहीं करते, केस वेस भी नहीं करते,   लेकिन चुप भी नहीं रहते - ईमेल तथा फोन के ज़रिये  सब तरफ चर्चा तो कर ही देते हैं

मैं मानता हूँ  कि एक कवि  द्वारा अपने मानधन का पैसा नगद  प्राप्त करना कोई अपराध नहीं है , सभी कवि लेते हैं, मैं भी लेता हूँ  मज़े की बात तो ये है कि खुद इनकम टेक्स वाले भी हमें नगद ही देते हैं परन्तु  यह पैसा  उस वक्त कालाधन हो जाता है  जब आप  उसे छिपाते हैं और अपनी वार्षिक रिटर्न में  पूरा पूरा नहीं दिखाते ---

कौन कवि कितने प्रोग्राम करता है और  प्रति प्रोग्राम कितने रुपये लेता है  ये कोई बड़ी बात नहीं है - इस मामले  में आमदनी छुपाने  वाले सभी कवि एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं,   कोई दूध का धुला नहीं है परन्तु  ये उल्लेखनीय इसलिए हो जाता है कि कवि  से लोगबाग ऐसे व्यवहार की  अपेक्षा नहीं करते.  कहने  का मतलब ये है कि आम आदमी द्वारा झाड़ू दिखाना बुरा नहीं है, झाड़ू लगाना भी बुरा नहीं है  लेकिन उस झाड़ू को  ऐसी गलत जगह फंसा लेना कि  आदमी मोर जैसा दिखने लगे, बुरा है  . लोग देख देख कर हँसने लगते है

याद रहे ब्रह्मचारी कहलाना  बुरा नहीं है  लेकिन ब्रह्मचारी की संतान कहलाना  बुरा है

जय हिन्द !
अलबेला खत्री

Tuesday, November 19, 2013

अथश्री अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनीय आचार संहिता




अथश्री अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनीय आचार संहिता


1. आयोजक

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कवि-सम्मेलनों  के वे पारम्परिक आयोजक जो कि  साहित्य और संस्कृति के उत्थान और संरक्षण के पुराने प्रहरी हैं, अपने काव्यमन्च पर केवल ऐसे कलमकारों को आमन्त्रित करें जिनके पास मौलिक रचनाओं के साथ साथ सौम्य प्रस्तुति हो, पूरे कार्यक्रम तक रुकने का समय हो  तथा न्यूनतम आधा घंटा काव्य-पाठ करके जनता जनार्दन को कार्यक्रम से जोड़े रखने का सामर्थ्य हो

ऐसे लोगों को हर्गिज़ न बुलायें जिनके पास इधर-उधर से उठाई अथवा चुराई गई  कविता / शेरो-शायरी हो, भौण्डी और अश्लील प्रस्तुति हो, अपनी प्रस्तुति से  मनोरंजन के बजाय साम्प्रदायिक उत्तेजना पैदा करते हों, सुरापान के बिना कविता न सुना सकते हों, गुटखा खा कर मंच पर ही थूकते हों और जिन्हें कार्यक्रम पूरा होने से पहले ही भाग जाने की उतावल हो . विशेषकर उन डेढ़ हुशियारों को तो कभी न बुलायें जो अकेले आने के बजाय अपने साथ अपने किसी पट्ठे या पट्ठी को लाने की ज़िद करते हैं  तथा "और कौन कौन आ रहे हैं ?" यह जानने के बाद  आपकी सोची हुई टीम में फेरबदल करवाते हुए अपने चहेते साथियों को यह कह कर फिट कराते हैं कि इनसे अच्छा और कोई नहीं


2 . संयोजक/संचालक 

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कवि-सम्मेलन का संयोजन शब्दब्रह्म  का एक पवित्र यज्ञ होता है इसलिए  उसका संयोजक/संचालक भी अत्यन्त सजग और सात्विक होना चाहिए . मन्च पर बैठे सभी कवि-कवयित्रियों को समान रूप से प्रस्तुत करना और बिना किसी भेदभाव के सभी को जमाने का प्रयास करना, ये एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिसे अपनी समस्त यारी-दुश्मनी व कुंठाओं से ऊपर उठ कर निभाना चाहिए . किसी भी कवि अथवा कवयित्री से कितने भी प्रगाढ़ सम्बन्ध क्यों न हों, उससे चिपक कर नहीं बैठना चाहिए,  चलते कार्यक्रम में उससे अन्य बातें  अथवा आँख मटक्का नहीं करना चाहिए तथा उसे हिट-सुपरहिट करने के चक्कर में पूरे कार्यक्रम की खाट खड़ी नहीं करनी चाहिए - नवोदित कवियों को मन्च का अनुभव नहीं होता इसलिए शुरुआत उनसे नहीं करना चाहिए क्योंकि शुरू के समय  लोगों का आवागमन व अन्य बाधाएं होती हैं और नवोदित कवि/ कवयित्री को यदि इन बाधाओं के कारण दर्शकों से उचित प्रतिसाद न मिले तो वे हतोत्साहित हो सकते हैं, शुरुआत तो किसी पूर्ण व्यावसायिक कवि से ही होनी चाहिए  ताकि कार्यक्रम की नीव मजबूत हो

इसके अलावा संयोजक का दायित्व ये भी है कि कार्यक्रम आरम्भ होने से पहले वह साउण्ड / लाइट्स आदि व्यवस्थाएं परख ले  और सभी कलमकारों के लिए पीने के पानी व चाय इत्यादि  की व्यवस्था सुनिश्चित कर ले - सभी क़लमकारों को बैठने के लिए यथायोग्य स्थान मिले व सभी कविगण पूरे कार्यक्रम में सजग हो कर बैठें  तथा सबकी प्रस्तुतियों पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दें, यह काम भी संयोजक का है


3 . कवि / कवयित्री
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ये ध्यान रखें कि आप शहर के मेहमान नहीं बल्कि मेहमान कलाकार हैं, आपको आपका मुंहमांगा पारिश्रमिक दे कर बुलाया गया है और इसलिए बुलाया गया है ताकि वहाँ उपस्थित लोगों को आप अपनी कला से आनन्द के साथ साथ कोई अनुकरणीय सन्देश भी दे सको . चूँकि पैसा आपको मिल रहा है और तालियां भी आपको मिल रही हैं  इसलिए कविता भी वही सुनाइये जो आपकी अपनी स्वरचित हो, औरों के जुमले / शे'र  अथवा चुटकुले सुनाने के लिए आपको नहीं बुलाया गया है . साथ ही आप जिस रस में सुनाते हैं उसके गौरव को बढाइये परन्तु अन्य रस के कवियों का उपहास न कीजिये .  एक बार जो मानधन सुनिश्चित हो गया उस पर कायम रहिये . "फ्लाइट से आया हूँ, टैक्सी करनी पड़ी, इससे अधिक तो दिल्ली  में मिल रहे थे" ऐसा कह कर आयोजक को ब्लैकमेल और मन्च को लज्जित  न करें


दिन में पहुँच जाएँ तो आराम करें .  आपस में चाहे कितना ही लगाव हो परन्तु बिस्तर को केवल सोने के काम में लें, अन्य बिस्तरीय गतिविधियां न करें क्योंकि  दिन में ही शरीर थका लेंगे  तो रात को मंच पर मेहनत  नहीं कर पाएंगे व "माइक खराब है, माइक खराब है" के बहाने बनाएंगे।  आपको जितनी भी चुगली - निन्दा या बेमतलब की बातें करनी हों वे प्रोग्राम के बाद करें और  सबसे  मुख्य बात यह है कि  आप हॉटेल की सुविधाओं का केवल तात्कालिक उपयोग करें, स्थाई उपयोग के लिए वहाँ का सामान जैसे कि बेडशीट, तकिया कवर, टॉवेल, नेपकिन, क्रॉकरी, शैम्पू, साबुन आदि अपने साथ न ले जाएँ  क्योंकि आयोजक को इनका पूरा पैसा भरना पड़ता है . साड़ी, सलवार इत्यादि अपने घर से ही साफ़ सुथरे लाएं या फिर हॉटेल में अर्जेन्ट धुलाई या ड्राईक्लीन कराएं तो उसका पैमेन्ट स्वयं  करें


- इतिश्री अलबेला खत्री रचित अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनीय आचार संहिता प्रथमोध्याय -

जय हिन्द !
अलबेला खत्री






 .

Monday, November 18, 2013

आम आदमी पार्टी "आप" वाले लोग हुशियार ही नहीं बल्कि घाघ हैं घाघ


अब तो मानना ही पड़ेगा कि आम आदमी पार्टी "आप" वाले लोग हुशियार ही नहीं बल्कि घाघ हैं घाघ - ऐसा नाम रखा है अपनी पार्टी का कि सारे मीडिया वाले लगातार उसी का प्रचार कर रहे हैं और वोह भी फ़ोकट में ========

एबीपी न्यूज़ - आप को रखे आगे
इंडिया टी वी - आप की अदालत
लाइव इंडिया - खबर हमारी फैसला आप का
आईबीएन 7 - आप का फ़ैसला
ज़ी न्यूज़ - ख़बरें अब आप के रंग में

_______इसी तरह और भी सब आप आप कर रहे हैं

जय हिन्द !
अलबेला खत्री




Monday, November 11, 2013

समझ जाएँ तो ठीक ,,,वर्ना समझाना पड़ेगा और तब हम भूल जायेंगे कि किसका क्या योगदान है


आदरणीय वरिष्ठ कवियो, प्यारे नवोदित कवि मित्रो, कवयित्री सखियो, कवि-सम्मेलनीय संयोजको, आयोजको एवं प्रायोजकों !

दिल की बात लिख रहा हूँ,  ज़रा ध्यान से बांचना … कुछ लोगों को लग रहा होगा कि मैं कोई भड़ास निकाल रहा हूँ.कुछ लोग प्रचारित कर रहे होंगे कि मैं पगला गया हूँ परन्तु  जो वाकई मुझे जानते हैं  वे समझ सकते हैं  कि मैं कोई भड़ासिया नहीं बल्कि भड़ासियों की भड़ास शांत करने वाला आयटम हूँ

मित्रो, पिछले तीन दशक से देख रहा हूँ कि कवि-सम्मेलनीय मंचों पर,  खासकर वहाँ जहाँ नोटों वाला लिफ़ाफ़ा बड़ा मिलता है, वही के वही मुट्ठी भर लोग चल रहे हैं कभी कोई नया बन्दा आता भी है तो उन्हीं द्वारा प्रमोट किया  सगा सम्बन्धी वगैरह = हद तो तब हो जाती है जब एक ही दिन में 2 प्रोग्राम टकरा रहे हों तो ये लोग तारीख बदलवा देते हैं ( कैसे बदलवाते है, ये बाद में बताऊंगा ) परन्तु किसी दूसरे के लिए रास्ता नहीं छोड़ते - मैं लाहनत भेजता हूँ ऐसी गन्दी और सड़ी हुई मानसिकता पर -

एक तरफ यही कवि मंच से चिल्लाते हैं कि राजनीति में जब तक नए, ऊर्जस्वित और प्रतिभावान लोग नहीं आयेंगे,  देश का भला नहीं होगा - दूसरी तरफ ये लोग ऐसे चिपके हैं मंच से कि नई  हवा आने ही नहीं देते - ये उन प्रतिभाओं का शोषण है जो हिंदी काव्यमंचों को अपनी सेवा देने में सक्षम भी हैं और समर्पित भी === लेकिन सबकी अपनी अपनी गिरोहबंदी है, देसी भाषा में सबकी चंडाल चौकड़ियाँ बनी हुई हैं जो बस अपने ही अपने सदस्य को माल दिलाने के लिए एकजुट रहते हैं

अरे देखो देखो देखो - गावस्कर, कपिल, सचिन, द्रविड़,सौरव बहुत  महान हैं लेकिन छोड़ दिया क्रिकेट नए लोगों को रास्ता देने के लिए और परिणाम ये निकला कि रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे लोगों ने भारत की क्रिकेट को और चमकदार बना दिया,,,,,,,,,,,,अभी भी सवेरा है, अभी सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ है लेकिन ये आदरणीय वरिष्ठ लोग जब तक कवि-सम्मेलन को ख़त्म नहीं करा देंगे, मानने वाले नहीं - इसलिए मेरा खुला निमंत्रण है उन सभी प्रतिभावान नए कवियों को  कि अगर इस मंच को सुरक्षित और चमकदार रखने में  अपना योगदान दें चाहते हो तो आओ ,,,,,,,,,,,,,मेरे साथ आओ

ये मत सोचो कि मेरे पास कितने आयोजन हैं ,,ये मत सोचो कि मैं तो खुद लाफ्टरिया हूँ, ये देखो कि मेरे भीतर कितनी आग है  जो आप सबके संघर्ष को वहाँ तक ले जायेगी जहाँ सफलता आपका स्वागत करेगी ----- आने वाला समय हमारा है , अगर ऐसा सोचते रहोगे तो घाटे में रहोगे ,,,,उठो ! चलो मेरे साथ - मैं इस विसंगति को जड़ से मिटा दूंगा, ये मेरा दावा है और वादा भी ,,,,,,,

हमारे ख्यातनाम वरिष्ठ कवियों ने इस मंच को सफल बनाये रखा है और देश विदेश में हिन्दी की पताका को फहराया है इसलिए उनके योगदान के समक्ष हम सब नत मस्तक हैं - क्योंकि यदि इनमे प्रतिभा न होती तो ये मंच कभी का ख़त्म हो गया होता - नि: संदेह इनका सम्मान और सत्कार हमारा दायित्व है , परन्तु  इन्हें भी अपने दायित्व को समझना होगा

समझ जाएँ तो ठीक ,,,वर्ना समझाना पड़ेगा और तब हम भूल जायेंगे कि किसका क्या योगदान है, तब हमें सिर्फ ये याद रहेगा हमारी सीट पर कौन कब्ज़ा कर के बैठा है

जय हिन्द !

-अलबेला खत्री

akhil bhartiya hindi hasya kavi sammelan  & albela khatri  
akhil bhartiya hindi hasya kavi sammelan  & albela khatri

akhil bhartiya hindi hasya kavi sammelan  & albela khatri

ये मेले ठेले वाले कवि ही हैं जो मंच पर कविता को ज़िन्दा रखे हुए हैं




मेरे टेलिफ़ोनिक मित्र आदरणीय डॉ राम अकेला जी,

आपने अपनी अधोलिखित टिप्पणी मेरी बहुत सी पोस्ट्स पर चिपका दी थी जिसे मुझे डिलिट करना पड़ा क्योंकि एक टिप्पणी एक ही जगह टिकानी चाहिए।  खैर - आपने मुझे लिखा कि

"आप द्वारा कवियों के मानधन सूची और उनके बारे की गयी टिप्पणी शायद कही न कही एक प्रशन खड़ा करती है ... आप ने कुछ कवियों के बारे कुछ ऐसा लिखा है जो कि हिंदुस्तानी कवि सम्मेलनों की परंपरा के खिलाफ लग रहा है | टिप्पणी वरिष्ट कवियों के सम्मान को ठेस पंहुचा रही है ! आदरणीय अशोक चक्रधर जी के बारे में जो लिखा... कुछ ग़लत है ... अगर १९६२ से अब तक का उनका सफ़र और हिंदी भाषा को पूरी दुनिया में प्रचारित और प्रसारित कर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में उनका जो योगदान रहा वह अमुल्य है | आप उसको वर्तमान के कवि सम्मेलनों के स्तर से तुलना नहीं कर सकते | अपना अपना समय होता है ... हमें फेसबुक जैसे सार्वजनिक मंच पर अपने कुनबे / परिवार के बड़ो के बारे में थोड़ा मर्यादित रहना चाहिए | जहा तक आपने कहा आजकल दर्शकों से आँख नहीं मिला पाते क्योंकि मोबाइल में देख देख कर कविता बांचते हैं... मै कहना चाहता हूँ की उनकी उम्र में आप और हम केसे पढेंगे ये ईश्वर ही जानता है ... पर हा जहा तक अगर वास्तविक कवितओं/लेखन की बात करे तो शायद आप और हम उनसे आज भी नज़र नहीं मिला सकते | किसी के साहित्य में ५० वर्षो के सफ़र और योगदान पर इतनी हल्की (ओछी) टिप्पणी का यक़ीनन किसी को कोई अधिकार नहीं है | मेले ठेले वाले कवियों की तुलना उनसे करना बेमानी होगी, आप चाहे तो कुछ सम्मान जनक लोगो के नाम इस सूचि से हटा ही ले तो बेहतर होगा ... बुरा नहीं माने ... बस गहरायी से सोचे क्यू की ऐसी छिछली टिप्पणी आप के पेज पर भी शोभा नहीं देती |"


डॉ  राम अकेला जी,
वरिष्ठ, बड़े और उम्रदराज़ तो आसाराम बापू  भी हैं तथा  विश्व में हिन्दी का प्रचार प्रसार उनहोंने भी खूब किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता, 50 वर्ष तो डॉ मनमोहन सिंह को भी हो गए देश की सेवा करते हुए परन्तु आज लोग उन्हें  कहने में गुरेज़ नहीं करते -  सवाल उम्र का नहीं, सवाल करनी का है - यह सच है कि ओछी टिप्पणी का अधिकार किसी को नहीं लेकिन यह बात भी आप मुझे नहीं उनको ही बताइये और वे न सुनें आपकी बात तो  7 अक्टूबर को अम्बाला के बराड़ा महोत्सव वाले कवि-सम्मेलन का उनका वीडिओ देख लो, बात आपकी  समझ में आ जायेगी  #####  और ये मेले ठेले वाले कवि आप किनको बता रहे हो ? स्वर्गीय निर्भय हाथरसी को ?  स्वर्गीय काका हाथरसी को ?  स्वर्गीय शैल चतुर्वेदी को ? हुल्लड़ मुरादाबादी को ? सन्तोषानन्द को ? बाबा सत्यनारायण मौर्य को ?  हरी ओम पवार को ? माणिक वर्मा को ?  स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य को ?  बालकवि बैरागी को ?  सत्यनारायण सत्तन को ?  या पंडित विश्वेश्वर शर्मा जैसे 2 4 कैरेट कवि को ?  प्यारे भाई,  ये मेले ठेले वाले कवि  ही हैं जो मंच पर कविता को ज़िन्दा रखे हुए हैं और वास्तविक रूप में कविता की सेवा कर रहे हैं जहाँ आपके ये वाले जाने से पहले दस बार सोचते हैं वहाँ वोह वाले जा जा कर कविता की अलख जगाते है =  आपको उनका मखौल नहीं उड़ाना चाहिए -- आपने मात्र कुछ  कवियों को ही सम्मानजनक कहा है, क्यों प्रभु !  बाकी सब कविगण  क्या अपमानजनक ही हैं :-)

___________अब आप मेरी टिप्पणी को ध्यान से पढ़ो और विचार करो कि इसमें गलत क्या लिखा है ?


अशोक चक्रधर - दिल्ली       40,000+     वांछित पेय पदार्थ व शेविंग रेज़र

* आदिकाल से  मंचों और मंचों से अधिक सरकारी महोत्सवों, सरकारी चैनलों व इन्टरनेट पर सक्रिय, ये पढ़ते  बहुत हैं इसलिए पंचतन्त्र की कहानियों से ले कर विदेशी कवियों की अनेक कवितायें इन्हें याद हैं - चुटकुले और हलकी फुल्की तुकबन्दी के अलावा हास्य में नवगीत भी सुनाते हैं जो हँसा तो नहीं पाते लेकिन 10 मिनट तक दर्शकों को बाँधे ज़रूर रखते हैं - कभी कभी जम भी जाते हैं, पर अधिकतर फ्लॉप ही होते हैं  क्योंकि  इनकी तुकबन्दी समझने के लिए अनिवार्य है कि या तो श्रोता घोर साहित्यकार हो या फिर इनका ही विद्यार्थी अथवा चेला-चेली हो हैं - आजकल दर्शकों से आँख नहीं मिला पाते क्योंकि मोबाइल में देख देख कर कविता बांचते हैं - जब कोई अन्य कवि खूब जम रहा हो तो मंच से उठ कर सिगरेट फूंकने ज़रूर जाते हैं - बाकी व्यक्ति बहुत बढ़िया है


#   क्या वो 40 हज़ार नहीं लेते, या पेय पदार्थ नहीं पीते या उन्हें रेज़र नहीं चाहिए - भइया, 5 बार तो मैं रेज़र दे चुका हूँ भरोसा न हो तो उन्हीं से पूछ लेना 

#   वे मंचों और महोत्सवों में सक्रिय नहीं या उन्हें पंचतंत्र की कथायें याद  नहीं ?

#   कभी कभी जमते नहीं हैं या फलॉप नहीं होते ? मोबाइल में देख कर कविता नहीं सुनाते या सिगरेट नहीं फूंकते ? या आदमी बढ़िया नहीं है ?

गलत क्या लिखा है, ये तो कहो----और हाँ, आपको मैंने कभी मंच पर नहीं सुना और न ही मिला इसलिए आपके कहने से मैं मेरी टिप्पणी नहीं हटा सकता परन्तु  अगर कोई ऐसा मंचीय कवि जो मेरा भी दोस्त न हो और उनका भी पट्ठा न हो अगर कहदे कि हटा दो तो मैं हटा भी दूंगा - उनको पब्लिसिटी देकर मुझे क्या मिल रहा है बाबाजी का लट्ठ ?

नोट : मैं कवि-सम्मेलन के आँगन में झाड़ू -पोता करके साफ़ करने की कोशिश कर रहा हूँ  इसमें विघ्न डालने के बजाय मेरे साथ आ कर काम करो तो कुछ सकारात्मक काम होगा

जय हिन्द


सदैव विनम्र
अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri in action
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Sunday, November 10, 2013

हिन्दी हास्य कवि सम्मेलन के मंच पर काव्य-कला के कुमकुम का काला कारोबार



कविता को देवता, कवि  को पुजारी व कवि सम्मेलन के मंच को मन्दिर तुल्य समझने वाले हमारे देश में आज काव्य-मंच की वास्तविक स्थिति क्या है इसका प्रामाणिक दस्तावेज़ है गत 32 मंच पर सक्रिय हास्यकवि अलबेला खत्री की आगामी पुस्तक हिन्दी हास्य कवि-सम्मेलन

जय हिन्द !

the new book of hasyakavi albela khatri
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hasyakavi albela khatri ka paigham, RAHUL GANDHI KE NAAM



hasyakavi albela khatri ka paigham, 
 
RAHUL GANDHI KE NAAM

आदरणीय राहुल गांधी जी,
सादर नमो नमो


टी वी पर देखा, आप कह रहे थे कि आपने इस देश को भोजन का अधिकार दिया - आप बड़े आदमी हैं। आप कह रहे हैं तो प्रामाणिक रूप से ही कह रहे होंगे परन्तु हे सोनियानन्दन ! जहाँ तक मेरा विश्वास है, मैं तो उस समय से भोजन करता आ रहा हूँ जब आपश्री का जन्म भी नहीं हुआ था बल्कि आपके स्वर्गीय पिताजी का विवाह भी नहीं हुआ था। और मैं ही क्यों मेरे पिताजी भी रोज़ भोजन करते थे, उनके पिताजी भी करते ही होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है

तो फिर आपने भोजन का अधिकार किसको दिया ? और हे नेहरुकुलभूषण ! आप होते कौन हैं हमें भोजन का अधिकार देने वाले ? जिस परमात्मा ने जन्म दिया है उसने हमारे भोजन का भी प्रबंध कर दिया है - बस आप तो यह ध्यान रखो कि हमारा भोजन आपकी पार्टी वाले न खा जाएँ

हे परमप्रतापी राजीवांश ! आप में बहुत एनर्जी है इसे यों जगह जगह घूम कर और वोटों के लिए चिल्ला चिल्ला कर खर्च मत करो, बल्कि जल्दी से शादी वादी करके किसी सुकन्या को आपके दो-चार बच्चों की माँ बनने का अधिकार दे दो। क्योंकि सत्ता तो आती जाती रहती है, परन्तु ये जवानी का मौसम
एक बार गुज़र गया तो फिर ढूंढते रह जाओगे ,,,मुझे इसका अच्छा खासा अनुभव हो चुका है इसलिए हे काँग्रेसकुलगौरव ! मेरा पॉलिटिक्स से कोई
लेना देना नहीं है , मैं तो स्नेहवश आपको सावधान कर रहा हूँ - क्योंकि नेहरू के बाद इंदिरा, इंदिरा के बाद राजीव और राजीव के बाद आप परन्तु
आपके बाद कौन ? ज़रा अपनी परंपरा का भी ध्यान रखो - गांधी परिवार बच्चे पैदा नहीं करेगा तो भारत में राज करने के लिए प्रधानमंत्री बनने क्या
आसमान से कोई फरिश्ता आयेगा ?

थोड़े में बहुत कह दिया है और मुफ्त में कह दिया है। अगर बात पसन्द आये तो इस बार इलेक्शन में कमल का बटन दबा देना और नहीं आये तो कोई बात नहीं

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
 

Saturday, November 9, 2013

आदरणीय राहुल गांधी जी, सत्ता तो आती जाती रहती है, परन्तु ये जवानी का मौसम एक बार गुज़र गया तो फिर ढूंढते रह जाओगे



hasyakavi albela khatri ka paigham, RAHUL GANDHI KE NAAM


आदरणीय राहुल गांधी जी,
सादर नमो नमो

टी वी पर देखा, आप कह रहे थे कि आपने इस देश को भोजन का अधिकार दिया - आप बड़े आदमी हैं।  आप कह रहे हैं तो प्रामाणिक रूप से ही कह रहे होंगे परन्तु  हे सोनियानन्दन !  जहाँ तक मेरा विश्वास है, मैं तो उस समय से भोजन करता आ रहा हूँ  जब आपश्री का जन्म भी नहीं हुआ था बल्कि आपके स्वर्गीय पिताजी का विवाह भी नहीं हुआ था।  और मैं ही क्यों मेरे पिताजी भी रोज़ भोजन करते थे,  उनके पिताजी भी करते ही होंगे,  ऐसा मेरा विश्वास है

तो फिर आपने भोजन का अधिकार किसको दिया ?  और हे नेहरुकुलभूषण ! आप होते कौन हैं हमें भोजन का अधिकार देने वाले ? जिस परमात्मा ने जन्म दिया है उसने हमारे भोजन का भी प्रबंध कर दिया है - बस आप तो यह ध्यान रखो कि हमारा भोजन आपकी पार्टी वाले न खा जाएँ

हे परमप्रतापी राजीवांश ! आप में बहुत एनर्जी है इसे यों जगह जगह घूम कर और वोटों के लिए चिल्ला चिल्ला कर खर्च मत करो, बल्कि जल्दी से  शादी वादी करके किसी सुकन्या  को आपके दो-चार बच्चों की माँ बनने का अधिकार दे दो।  क्योंकि सत्ता तो आती जाती रहती है, परन्तु ये जवानी का  मौसम
एक बार गुज़र गया तो फिर  ढूंढते रह जाओगे ,,,मुझे इसका अच्छा खासा अनुभव हो चुका है इसलिए हे काँग्रेसकुलगौरव !   मेरा पॉलिटिक्स  से  कोई
लेना देना नहीं है ,  मैं तो स्नेहवश आपको सावधान कर रहा हूँ - क्योंकि  नेहरू के बाद इंदिरा,  इंदिरा के बाद राजीव  और राजीव के बाद आप  परन्तु
आपके बाद कौन ?  ज़रा अपनी परंपरा का भी ध्यान रखो - गांधी परिवार बच्चे पैदा नहीं करेगा  तो भारत में राज करने के लिए  प्रधानमंत्री बनने क्या
आसमान से कोई फरिश्ता आयेगा ?

थोड़े में बहुत कह दिया है और मुफ्त में कह दिया है।  अगर बात पसन्द आये तो इस बार इलेक्शन में कमल का बटन दबा देना और नहीं आये तो कोई बात नहीं

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री




hasyakavi albela khatri in action


Friday, November 8, 2013

हिन्दी कवि सम्मेलनों के हास्यकवियों की मानधन सूचि



## अ. भा. हिन्दी कवि सम्मेलनों के हास्यकवियों की मानधन सूचि ##
                    
सुरेन्द्र शर्मा - दिल्ली          1,00,000+    एयर टिकट व शाकाहारी भोजन

* काका हाथरसी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय, भारत के वैश्विक हास्यकवि जिन्हें लोग सुन कर तो एन्जॉय करते ही हैं  देख कर भी मज़े लेते हैं. चुटकियां और त्वरित टिप्पणियां सुनाते हुए  हँसाते हँसाते अचानक चाण्डालनी सुना कर डरा भी देते हैं - आयोजक के लिए पूर्णतः पैसा वसूल कलाकार, कभी कभी अपने किसी प्रिय कवि या कवयित्री का नाम भी रिकमण्ड करते हैं जिसे बुलाना अनिवार्य होता है - अन्यथा आप भी नहीं आते - आपकी कवितायें परिवार और समाज को जोड़ने का काम करती हैं
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माणिक वर्मा - भोपाल          40,000+      ट्रेन का टिकट

* देश के सबसे बड़े व्यंग्यकवि - इनकी प्रस्तुति कवि सम्मेलन में तालियों का तूफ़ान खड़ा कर देती है - अत्यन्त सरल और मौलिक व्यक्ति हैं - अगर केवल कविता को ही मापदण्ड मान कर मानधन दिया जाता तो ये देश के सबसे महंगे कवि होते
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अरुण जैमिनी - दिल्ली          40,000+     एयर टिकट

* सरल, सौम्य, सुदर्शन और आकर्षक व्यक्तित्व - मंच जमाऊ - हरियाणवी में चुटकुले और हिन्दी में कवितायेँ सुनाते हैं, तारीफ़ और मार्केटिंग सिर्फ़ दिल्ली के कवियों की करते हैं  परन्तु निन्दा सबकी सुनते हैं और पूरे मनोयोग से सुनते हैं - गज़ब का हास्यबोध और वाकपटुता इनकी अतिरिक्त योग्यता है
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प्रदीप चौबे - ग्वालियर           40,000+   वांछित पेय पदार्थ

* एक ज़माना ऐसा भी था जब इनका हर वाक्य ठहाकों की गूंज पैदा करता था - आज भले ही वोह बात न हो, लेकिन दम ख़म आज भी पूरा है - प्रतिभा इत्ती ज़बरदस्त है कि सड़े से सड़े लतीफे पर भी लोगों को तालियां बजाने पर बाध्य कर दे - इनसे कुछ नया सुनाने का आग्रह नहीं करना चाहिए - इन्हें अच्छा  नहीं लगता

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प्रताप फ़ौजदार - दिल्ली         80,000+   एयर टिकट

* लाफ्टर चैम्पियन, युवा लेकिन परिपक्व कलमकार,  मंच पर मज़मा जमाने और तालियां बजवाने  में कुशल, मौलिक रचनाकार जो पहले अपने ख़ास अंदाज़ में हँसाता है फिर कविता पर आता है और जब कविता पर आता है तो छा जाता है - पैसा कमाने के अलावा कोई व्यसन नहीं
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पं विश्वेवर शर्मा - मुम्बई          35,000+   ट्रेन टिकट व भांग का गोला

* एक ज़माने से  सर्वाधिक चर्चित पैरोडीकार, गीतकार,  मॊलिक और धुंआधार जमाऊ कवि - ख़ास बात यह है कि अब  मदिरापान भी नहीं करते - पैसा वसूल आयटम - अनेक फ़िल्मों के गीतकार - आजकल उम्र का तकाज़ा है इसलिए एक साथी को साथ ले कर आते हैं - हिंदी कवि सम्मेलन में इनसे अधिक कोई  हँसाने वाला नहीं
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शैलेश लोढ़ा - मुंबई                3,00,000+   बिजनेस क्लास एयर टिकट

*हल्की फुल्की कविताओं और इधर-उधर के ढेरों चुटकुले व शे'र सुना कर अपने विशिष्ट अन्दाज़ में लोगों को एन्टरटेन करने वाले टी वी कलाकार - हाज़िर जवाबी और वाकपटुता में लामिसाल - स्वभाव से पक्के मारवाड़ी बिजनेसमेन, परन्तु  मैं ही मैं हूँ, मैं ही मैं हूँ  ऐसा सोचने के अलावा और कोई व्यसन नहीं

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सम्पत सरल -जयपुर               25,000+   टिकट ( मिल जाए तो ठीक )

* चुटकुले पर चुटकुले सुनाते हैं  परन्तु चुटकुले कह कर नहीं, निबन्ध कह कर - इस दौर के सर्वाधिक आत्ममुग्ध  व्यंग्यकार जिन्हें भरोसा है कि जो काम व्यंग्य में परसाई जी और शरद जोशी जी से छूट गया था उसे ये पूरा कर लेंगे - कभी कभी जम भी जाते हैं, न भी जमें तो इन्हें फर्क नहीं पड़ता - क्योंकि राजस्थानी भाषा के नाम पर इनका  काम चलता रहता है - कोई खास व्यसन नहीं
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सञ्जय झाला - जयपुर            40,000+   टिकट ( मिल जाए तो ठीक )

* अपनी तरह के अलबेले कवि + कलाकार -  वाणी और प्रस्तुतिकरण में ज़बरदस्त तालमेल - ज़्यादातर अपना ही माल सुनाते हैं - कोई व्यसन नहीं सिवाय अध्ययन के  - शानदार और युवा कलमकार
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अलबेला खत्री - सूरत               35,000+   हवाई टिकट ( कोई दे दे तो )

* हास्यकवि, चुट्कुलेबाज़, पैरोडीकार और ओजस्वी गीतकार - मंच जमाऊ कलाकार - वैसे इन्हें भ्रम है कि मैं देश का सर्वश्रेष्ठ पैरोडीकार हूँ - पूर्णतः मौलिक रचनाकार  - कोई नखरा नहीं - चाय और धूम्रपान का व्यसन है
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डॉ सुरेश अवस्थी - कानपुर     40,000+     ट्रेन टिकट

*  पूर्णतः पैसा वसूल वरिष्ठ हास्य-व्यंग्यकार, शिष्ट और शालीन कविताओं के माध्यम से दर्शकों पर जादू कर देते हैं  -  आपकी कवितायें परिवार और समाज को जोड़ने का काम करती हैं , देश की विसंगतियों पर करारा प्रहार करते हैं - व्यसन का पक्का पता नहीं  -
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सुनील जोगी - दिल्ली          40,000+      एयर  टिकट

* गत अनेक वर्षों से लगातार मंचों पर सक्रिय, चुटकुले और छन्दों के अलावा हास्यगीत भी सुनाते हैं - कभी खूब जम जाते हैं, कभी ठीक ठाक काम कर लेते हैं - कुछ  बातें या तो ये दूसरों की सुनाते हैं या दूसरे इनकी सुनाते हैं, यह अभी सुनिश्चित नहीं है लेकिन मंच पर अपना काम बखूबी कर लेते हैं
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सुरेन्द्र यादवेन्द्र - बाराँ         25,000+      रेल टिकट

* मंच जमाने में पूर्ण कुशल ज़बरदस्त हास्यकवि,  चुटकुलों को चार चार पंक्तियों में बाँध कर  उन्हें मौलिक कविताओं के भाव बेचने में माहिर -  मंच को इन्होंने अनेक कवयित्रियाँ तैयार करके दी हैं - स्वभाव से सरल और मनमौजी आदमी हैं - एक बार हाँ करदे तो पहुँचते ज़रूर हैं - वैसे तो ऑपनिंग पोएट के रूप में अधिक फिट हैं  लेकिन कवयित्री के बाद पढ़ने की लत लग गयी है - यही एक व्यसन है
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अशोक चक्रधर - दिल्ली       40,000+     वांछित पेय पदार्थ व शेविंग रेज़र

* आदिकाल से  मंचों और मंचों से अधिक सरकारी महोत्सवों, सरकारी चैनलों व इन्टरनेट पर सक्रिय, ये पढ़ते  बहुत हैं इसलिए पंचतन्त्र की कहानियों से ले कर विदेशी कवियों की अनेक कवितायें इन्हें याद हैं - चुटकुले और हलकी फुल्की तुकबन्दी के अलावा हास्य में नवगीत भी सुनाते हैं जो हँसा तो नहीं पाते लेकिन 10 मिनट तक दर्शकों को बाँधे ज़रूर रखते हैं - कभी कभी जम भी जाते हैं, पर अधिकतर फ्लॉप ही होते हैं  क्योंकि  इनकी तुकबन्दी समझने के लिए अनिवार्य है कि या तो श्रोता घोर साहित्यकार हो या फिर इनका ही विद्यार्थी अथवा चेला-चेली हो हैं - आजकल दर्शकों से आँख नहीं मिला पाते क्योंकि मोबाइल में देख देख कर कविता बांचते हैं - जब कोई अन्य कवि खूब जम रहा हो तो मंच से उठ कर सिगरेट फूंकने ज़रूर जाते हैं - बाकी व्यक्ति बहुत बढ़िया है
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महेंद्र अजनबी  - दिल्ली       30,000+      वांछित पेय पदार्थ व गुटखा

* कमाल के सरल और सरस व्यक्ति हैं , जल्दी ही घुल मिल जाते हैं, आमतौर पर पीली शर्ट पहनते हैं और ट्रकों के पीछे लिखे शे'र सुनाते हैं, कभी कभी शर्ट का रंग बदल भी जाए पर शे'र वही रहते हैं - ज़बरदस्त कॉन्फिडेन्ट हैं - चुटकुले भी कविता कह कर सुनाते हैं - जमना न जमना  कोई मायने नहीं रखता - क्योंकि  ये जानते हैं कि प्रोग्राम में श्रोता नहीं आयोजक बुलाते हैं व आयोजक उन्हीं को बुलाते हैं जिन्हें दिल्ली के बड़े कवि रिकमण्ड करते हैं - इनकी भूत वाली कविता अभूतपूर्व है कभी भूतपूर्व नहीं होगी
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सुरेन्द्र दुबे - दुर्ग                 35,000+     

* हँसाने के लिए इन्हें अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता - जब ये अपने भयंकर श्यामवर्णी सौंदर्य का वर्णन करते हैं तो ठहाके बेतहाशा गूंज उठते हैं - मंच जमाने में पूर्ण कुशल ज़बरदस्त हास्यकवि,  चुटकुलों को कविताओं के भाव बेचने में माहिर -  इन्हें अन्य कवियों के सामने ही उनकी कविताओं के सारे पञ्च सुनाने का ज़बरदस्त शौक है जिसका कोई भी कवि विरोध नहीं करता - विरोध तो तब करे जब समझ में आये क्योंकि ये हिंदी के सारे टोटके छत्तीसगढ़ी में सुनाते हैं - शुक्र है पूरा देश छतीसगढी नहीं है वरना आज इनसे बड़ा कोई लोकप्रिय कवि नहीं होता - इनकी मित्रता आर्थिक रूप से बहुत लाभप्रद होती है, ऐसा वो कहते हैं जिन्हे इनके प्रोग्रामों का निमंत्रण मिलता रहता है
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सुरेन्द्र दुबे - जयपुर            35,000+       वांछित पेय पदार्थ

*पुराने गानों की तरह सदाबहार - मंच जमाने में प्रवीण  - ज़रूरत से भी अधिक तीव्रबुद्धि के स्वामी  और भयंकर किस्म के लिक्खाड़ - भाषा के विद्वान और मारवाड़ी संस्कारों को गौरवान्वित करने वाले मूलतः ब्यावर के इस कवि में धैर्य और संतोष के अलावा सबकुछ है,,,,,, इसको उखाडूं, उसको पछाडूं  का इनको इतना विराट चाव है कि साहित्य के बजाय यदि राजनीति में गए होते तो कम से कम उप प्रधानमन्त्री तो बन ही गए होते - सामने मीठा रहना और पीछे से मखौल उड़ाना इनके लिए पाचक चूर्ण की तरह है - कविता की हर विधा में माहिर यह कलमकार हिन्दी मंचों का गौरव है
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सुभाष काबरा - मुंबई          30,000+       वांछित पेय पदार्थ

*स्वर्गीय रामरिख मनहर, शैल चतुर्वेदी और राममनोहर त्रिपाठी ने काव्य-मंचों का जो हरियाला खेत आने वाली कई पीढ़ियों तक के लिए तैयार किया था उसे चन्द  वर्षों में ही खा पी के पिछवाड़े पर हाथ पोंछ लेने का श्रेय इनको ही जाता है - आप रोज़ रोज़ अण्डा प्राप्त करने के बजाय एक बार में ही मुर्गी हलाल करने के आदी हैं - न खेलेंगे न खेलने देंगे, हम तो घुच्ची में मूतेंगे वाले अंदाज़ के धनी हैं और अत्यंत कुशाग्र बुद्धि हैं - कुल 50 हज़ार का बजट हो तो 5 हज़ार में 3 कवियों को निपटा कर 45 हज़ार कैसे बचाया जाये, यह इनसे सीखना चाहिए - श्रीमती सावित्री कोचर ने भी इन्हीं से सीखा है - तकदीर के बादशाह हैं, ताश में भी कभी हारते नहीं - रिपीट वैल्यू भले न हो, लेकिन एक बार तो बुलाया जा ही सकता है

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प्रवीण शुक्ल - दिल्ली         30,000+       टिकट भी मिले तो वेल एंड गुड

*हास्य-व्यंग्य के ज़बरदस्त प्रस्तोता - मंच सञ्चालन भी अच्छा कर लेते हैं, विभिन्न प्रकार की टिप्पणियों, चुटकियों और मंचीय टोटकों के ज़रिये काम निकल लेने में माहिर पैसा वसूल काव्य-कलाकार - व्यक्तित्व और लिबास में शानदार तालमेल इनकी अतिरिक्त विशेषता है

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वेणुगोपाल भट्टड़-हैदराबाद 20,000+      ताश खेलने वाले लोग

*केवल 15 - 20  क्षणिकाओं, मुट्ठी भर चुटकुलों और टोटल 20 मिनट की अधिकतम परफॉर्मेंस के दम पर अखिल भारतीय कवि  कहलाने वाले एक मात्र भाग्यशाली कवि जिन्हें बुलाना हो तो जैसे शेर का शिकार करने के लिए शिकारी बकरी रूपी चारे का इंतज़ाम करते हैं वैसे ही इन्हें बुलाने के लिए दो चार ऐसे कवि बुलाना  पड़ता है जो कि ताश के शौक़ीन हों  ,,,, बाकी काम ये खुद ही कर लेते हैं  - खानदानी माहेश्वरी हैं - संस्कारी व्यक्ति हैं और 7 5 वर्ष के चिरयुवा हैं - राजस्थानी लोगों में खूब लोकप्रिय हैं
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सुरेश उपाध्याय-होशंगाबाद  20,000+      टिकट मिल जाए तो अच्छा है

* एक ज़माने में इस व्यंग्यकार के नाम की तूती बोलती थी, अगर उस सफलता को जाम में डूबा डूबा कर क़त्ल न किया होता तो आज बहुत माल कूट रहे होते ,,,शानदार कलमकार, कुशल परफॉर्मर और सरल व्यक्तित्व के इस वरिष्ठ कवि को सुनना आज भी अच्छा लगता है क्योंकि अब उन्होंने तरल पदार्थ से तौबा कर ली है
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आशकरण अटल - मुम्बई     30,000+      वांछित पेय पदार्थ

* न कभी सुपरहिट, न कभी सुपर फ्लॉप  - अपनी रफ़्तार से सदैव आगे बढ़ने वाले इस परम मौलिक और विशिष्ट रचनाकार  को यों तो बहुत कुछ मिला है, फिर भी उतना नहीं मिला जितना  कि मिलना चाहिए था  ,,, सतत सजग और कविता के सृजन में समर्पित रहने वाले इस शख्स को 4 पैग पेय पदार्थ के अलावा केवल उस चीज का शौक है जिसके लिए उनकी अब उम्र तो नहीं रही पर आदत नहीं गयी ,,, कविता में बिम्बों के अद्भुत प्रयोग करते हैं - उत्तम दर्ज़े के  लेखक हैं
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घनश्याम अग्रवाल - अकोला  25,000+    ट्रेन टिकट

* शुद्ध हास्य और शुद्ध व्यंग्य के शुद्ध सात्विक और श्लील रचनाकार ,,,सरल राजस्थानी में बोलते हैं तो पब्लिक को हँसा हँसा कर लोटपोट कर देते हैं - बहुत महंगा सृजन करते हैं  परन्तु बहुत सस्ते में बेच देते हैं क्योंकि इन्हें सिर्फ कविताई का हुनर आता है व्यावसायिक गोटियां फिट करना नहीं सीखा  - ज़बरदस्त  कवि - धुंआधार परफॉर्मर - आजकल उम्र का तकाज़ा है, परन्तु प्रस्तुति अभी भी बरकरार है
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कुमार विश्वास - गाज़ियाबाद  80,000+   एयर टिकट

* भयंकर याददाश्त और मंचीय व्यावसायिकता में प्रकाण्ड पाण्डित्य धारक इस कवि का भी एक छोटा सा ज़माना था ,,, जब  श्रोताओं व दर्शकों पर इसकी आवाज़ का जादू चलता था ,,आजकल वोह बात नहीं रही, फिर भी कभी कभी जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाता है वैसे यह भी कभी कभी यह भी जमता ही होगा, ऐसी उम्मीद कर सकते हैं,  लोगों के चुटकुले चुराने और अन्य कवियों के मुक्तक व पुराने शायरों के शे'र सुना सुना कर मज़मा जमाने व वरिष्ठ लोगों के साथ बदज़ुबानी करने में पूर्णतः कुशल इस युवा कलाकार के भाग्य को सराहना चाहिए ,,,,,सबसे बड़ी विशेषता और विनम्रता इस कलाकार की ये है मंच को जमाने और तालियां बजवाने का सारा जिम्मा यह अकेले ही अपने सर पे ले लेता है दूसरों को तो कभी जमने ही नहीं देता, अन्य कवियों के समय तो माइक भी हाथ खड़े कर देता है, हाँ, कभी कभी कोई हम जैसा बापजी मिल जाए तो बात अलग है  ;-)

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सुदीप भोला - जबलपुर           20,000+     रेल टिकट

* युवा कवियों में सर्वाधिक तीव्रता से मंच  पर अपना स्थान सुनिश्चित करते जा रहे  इस होनहार कलमकार की शब्दावली तो ज़बरदस्त है ही, आवाज़ और प्रस्तुतिकरण भी धाकड़ है , सरल, सहज स्वभाव और मंच पर पूरी मेहनत  करने का जज़बा - अभी तक तो व्यसन और आडम्बर से दूर है और उम्मीद है आगे भी रहेगा क्योंकि इन्हें अपनी ज़िंदगी में वो सब हासिल करना है जो इनके पूज्य पिता कविवर संदीप सपन से लोगों ने छीन लिया था - सचमुच छुपा रुस्तम है ये नौजवान
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दीपक गुप्ता - दिल्ली              20,000+     ट्रेन टिकट

* हास्य-व्यंग्य के अलावा शेरो-शायरी में भी ज़बरदस्त महारत - हज़ार अवरोधों के बावजूद सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी प्रतिभा के बल पर दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में हिंदी हास्य का झंडा बुलन्द  करने वाला दबंग कलमकार - इंटरनेट पर भी लगातार सक्रिय - शानदार परफॉर्मर - व्यसन की कोई पुष्ट जानकारी नहीं

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योगिन्दर मौद्गिल -पानीपत      20,000+     वांछित पेय पदार्थ अनिवार्य

* हरियाणवी और हिंदी में समान रूप से सतत लेखन करने वाले खाँटी कलमकार, प्यार से इन्हें पानी पूछो तो लस्सी पिला देंगे लेकिन गुस्से में कोई आँख दिखाए तो ये लट्ठ भी दिखा सकते हैं - ठेठ हरियाणवी बन्दा - ग़ज़ल, गीत,दोहा, भजन इत्यादि सभी विधाओं में कुशल - मंच पर धुँआधार तो कभी-कभार ही जमते हैं लेकिन अच्छे अंकों से उत्तीर्ण सदैव होते हैं - पीते वक्त कोई टोकेगा तो मार खायेगा - ताश में हार जाए तो जीतने वाले को देते कुछ नहीं सिवा बधाई के
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जानी बैरागी - राजोद              20,000+     2 पैकेट सिगरेट

* अनेक रसों में अनेक तरह की बातों, कहावतों, दंतकथाओं और चुटकुलों का मिक्स भेल बना कर परोसता है तो जनता झूम झूम उठती है - समझ में किसी के कुछ नहीं आता लेकिन मज़ा आ जाता है - पहले सहज उपलब्ध था परन्तु जबसे मंचों पर हिट और कथित रूप से शैलेश लोढ़ा की टीम में फिट हुआ है, इसमें भी हरी ओम पंवार के गुण आ गए हैं - स्वीकृति दे कर भी न पहुंचना इसका प्यारा शगल हो गया है - भगवान् का पक्का भक्त है और व्यसन के नाम पर केवल बड़ी बड़ी डींगें हांकना है
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सूर्यकुमार पाण्डेय -लखनऊ   25,000+  

* अपनी विशिष्ट शैली में हास्य और व्यंग्य की बारीक बुनावट के साथ अनेक वर्षों  से मंच पर सफल प्रस्तोता - अपना काम  मुस्तैदी और सजगता के साथ करते हुए हिंदी काव्यमंचों को समृद्ध करने वाले वरिष्ठ कलमकार - जोड़तोड़ से दूर, व्यसन का पता लगेगा तो बताएँगे

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किरण जोशी - अमरावती      20,000+      वांछित पेय पदार्थ

* सशक्त और बुलंद आवाज़ के  साथ साथ अनेक सार्थक कविताओं के द्वारा मंच पर खूब जमते हैं, एहसान कुरैशी की सफलता से आकंठ कुंठित न होते तो अच्छा था, क्योंकि वह इन्हीं का तैयार किया हुआ आयटम है, संचालन में कुशल हैं परन्तु  इनका कवित्व इनके सञ्चालन पर भारी है - अपने पराये का कोई भेद नहीं करते, जिसका भी याद आ जाए उसी का चुटकुला सुना देते हैं - मस्त आदमी है - दिन में  टनाटन रात में टनटनाटन टनटनाटन टन ;-)

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पॉप्युलर मेरठी - मेरठ          30,000+      

* उर्दू और हिंदी के मंचों पर सामान रूप से सक्रिय ,,,ज़बरदस्त शायर और परफॉर्मर - हज़लेँ कहने में लाजवाब - हँसमुख और मृदुल व्यक्तित्व - टी वी के परदे पर अक्सर दिखते रहते हैं - सभी संयोजकों के प्रिय रचनाकार - न काहु से दोस्ती न काहु से प्यार वाला अंदाज़ - ऐसे आदमी में व्यसन नहीं गुण ढूंढने चाहियें
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बाबू बंजारा - कोटा                 15,000+    

* हिंदी से अधिक हाड़ौती भाषा में कविता करते हैं - लोकगीतों की शैली में झूम झूम कर सुनाते हैं - बढ़िया जमते हैं
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शांतिलाल तूफ़ान- निम्बाहेडा     20,000+        वांछित  पेय पदार्थ

* हास्य के अलावा ग़ज़ल में भी महारत - जम जाये तो खूब जम जाये, नहीं जमे तो बिलकुल नहीं जमे, पेय पदार्थ की क्वॉन्टिटी व  क्वालिटी पर निर्भर है, अपनी तरह के अलमस्त परफॉर्मर, आयोजक का पैसा वसूल कराने वाला कलाकार
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अतुल ज्वाला  - इंदौर               15,000+       मंच सञ्चालन का मौका

* नया है लेकिन पूरी तरह जम चुका है मंचों पर, युवा है, ऊर्जावान है, हाज़िरजवाब है, एक घंटे तक मज़मा लगा सकता है  और क्या चाहिए आयोजक को ?
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संदीप शर्मा - धार                     20,000+      जो मिल जाये, स्वीकार है

* कविता में उछलकूद का जबरदत घालमेल - बोलता कम है कूदता अधिक है, क्या क्या सुनाता है कोई नहीं जानता, लेकिन मज़ा पूरा देता है - कविसम्मेलनीय मंच पर कविता को मिमिक्री की तरह प्रस्तुत करने वाला हास्यकार - बढ़िया व्यवहार और सरल सहज स्वभाव का धनी होने के साथ साथ विनम्र भी है - शुद्ध देसी बन्दा
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स. मंजीतसिंह - दिल्ली              20,000+     

* फ़िल्मी गीतों, चुटकुलों, टिप्पणियों इत्यादि सभी मसालों से भरपूर मंचीय कलाकार - कविता भी ठीकठाक कर लेते हैं - स्वभाव से सरस और मिलनसार, सफलता किए साथ अनेक वर्षों से मंच पर
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शम्भूसिंह मनहर - खरगोन         20,000+     टिकट मिल जाए तो वाह वाह

* पढ़े लिखे आदमी हैं, शिक्षक कवि  होने के कारण मंच पर भाषा मर्यादित रखने का प्रयास करते हैं पर कभी कभी फिसल भी जाते हैं - अपने आप को वीररस का कहलाना पसंद करते हैं लेकिन लोग इनको हास्य  का ही मानते हैं - भगवान ने गले में नारी जैसा स्वर दिया है जिसे मर्दाना बनाने का कोई प्रयास इनका सफल नहीं होता - अनेक तरह के सुनेसुनाए चुटकुले और चलताऊ टिप्पणियां  करने से भी बाज़ नहीं आते परन्तु जब कविता पाठ करते हैं तो पाकिस्तान  के बखिये उधेड़  देते हैं - अत्यंत मज़ेदार व्यक्तित्व के स्वामी हैं - बढ़िया टाइमपास करते हैं
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सुरेश अलबेला - कोटा                 70,000+     वांछित पेय पदार्थ

* लाफ्टर चैम्पियन बनने के बाद इनके सेंसेक्स में ज़बरदस्त उछाल आया था - खूब जमाऊ और टिकाऊ कलमकार व शानदार परफॉर्मर - इंटेलिजेंट किस्म  का कलाकार - पैमेंट से अधिक काम करने वाला  सजग और मंच के प्रति समर्पित कवि
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शेष अगले अंक में.......... जारी है 




Thursday, November 7, 2013

अखिल भारतीय हिन्दी कवि सम्मेलनों के वीररस कवियों की मानधन सूचि




 हिन्दी कवि सम्मेलनों के प्रचलित ओजस्वी (वीररस) कवियों की सूचि


हरी ओम पवार - मेरठ 1,00,000+ सी डी बेचने के लिए एक काउंटर

* यों तो राष्ट्रीय समस्याओं और सामाजिक विसंगतियों पर गीत सुनाते हैं और बहुत ऊँचे स्वर में सुनाते हैं परन्तु गीत न चलें तो चुटकुले सुनाने से भी परहेज़ नहीं करते -
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सत्य नारायण सत्तन - इंदौर 70,000+ भांग का गोला ( उपलब्ध हो तो )

* मंच के वरिष्ठ दबंग हैं - ख़ूब विद्वान, ऊर्जावान व पहलवान वक्ता हैं - अश्लील से अश्लील बात भी इतने सलीके से कहते हैं कि लोग हक्के बक्के रह जाते हैं, इन्हें अपनी परफॉरमेंस के बजाय अपने पाँव छुआने व दूसरे कवियों की परफॉर्मेंस पर रायता ढोलने में अधिक आनंद आता है - ज़र्दा खाते हैं इसलिए मंच पर एक खाली गिलास का होना अनिवार्य है वरना मंच की सफ़ेद चादर खराब हो सकती है
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वेदव्रत वाजपेयी - लखनऊ 40,000+ चार लोग माला पहनाने के लिए

* हिन्दूत्व और भारतीयता के गौरव को प्रतिष्ठापित करने वाले शानदार और जानदार कवि - स्वभाव से गरम और अहंकारी परन्तु आयोजक के लिए सदैव विनम्र और मंच जमाऊ - कोई व्यसन नहीं - मॊलिक कवि हैं पर कभी कभी कुछ पंक्तियाँ अपने पिताजी की भी सुना देते हैं
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आशीष अनल - लखनऊ 30,000+ वांछित पेय पदार्थ

* युवा लेकिन परिपक्व कलमकार, मंच पर सहयोगी कवियों को प्रोत्साहन और तालियां देने में कुशल, मौलिक रचनाकार -
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सन्दीप सपन - जबलपुर 25,000+

* एक ज़माने के सर्वाधिक चर्चित कवि, मॊलिक और धुंआधार जमाऊ कवि - ख़ास बात यह है कि अब मदिरापान भी नहीं करते इसलिए उनके काव्यपाठ की दिव्यता देखते ही बनती है
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डॉ कर्नल वी पी सिंह - बड़ौदा 35,000+ एयर टिकट

* बुलन्द व्यक्तित्व और बुलन्द आवाज़ के धनी, धारदार कवितायें और प्रवाहमान मौलिक प्रस्तुति - कोई व्यसन नहीं - सैन्य अनुशासन में ढला जीवन - एक ही कमज़ोरी : मंच पर सिर्फ़ कविता कर सकते हैं लफ्फ़ाज़ी नहीं आती
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कमलेश राजहंस - बनारस 25,000+

* राष्ट्रीय और सामाजिक विसंगतियों पर गीत सुनाते हैं परन्तु चुटकुले सुनाने से भी परहेज़ नहीं करते - रामचरित मानस के विद्वान हैं और मौलिक कवि हैं
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लाजपतराय विकट - धनबाद 30,000+

* राष्ट्रीय धारा के मौलिक कवि जो धुंआधार भले न जमे परन्तु अपना काम ठीक से कर लेते हैं
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विनीत चौहान - अलवर 30,000+

* बेटों की तुक हेटों से मिला कर तालियां पिटवाने वाले युवा कवि, मंच के सारे टोटके याद हैं जिन्हें काम में लेने के लिए मंच सञ्चालन भी कर लेते हैं - अन्य जमाऊ कवियों की निन्दा के अलावा कोई व्यसन नहीं
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जगदीश सोलंकी - कोटा 40,000+ वांछित पेय पदार्थ


* ओज और करुणा के सिद्धहस्त कवि एवं ज़बरदस्त प्रस्तोता - मंचीय कविताओं में साहित्यिक भाषा का प्रयोग करने वाले मौलिक रचनाकार
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बालकवि बैरागी - मनासा 40,000+


* सर्वाधिक सम्मानित मंचीय कवि - कोई व्यसन नहीं - कोई डिमाण्ड नहीं, कोई नखरा नहीं - बस, आजकल कविता कम, भाषण अधिक करते हैं - इन्हें सुनना एक सुखद अनुभव होता है
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गजेन्द्र सोलंकी - दिल्ली 30,000+


* ये प्रणाम विशेषज्ञ कवि हैं , इनके पास लगभग सभी के लिए प्रणाम के छंद तैयार मिलते हैं। राष्ट्रीय और सामाजिक विसंगतियों पर गीत सुनाते हैं और परन्तु चुटकुले भी ठीकठाक सुना लेते हैं जमते हैं या नहीं ये तो आयोजक जानें लेकिन संयोजन प्राप्त करने में सफल रहते हैं - अच्छे कवि हैं, व्यसन नहीं करते
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अब्दुल गफ्फ़ार - जयपुर 20,000+ वांछित पेय पदार्थ


* मंच के दबंग हैं, ख़ूब ऊर्जावान वक्ता हैं - जमाऊ फ़नकार हैं, बस कभी-कभी बोलते बोलते लहर में आकर कुछ भी बोल देते हैं - मांसाहार न मिले तो ये खिन्न रहते हैं यह ध्यान रखना चाहिए
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श्रीमती प्रेरणा ठाकरे 20,000+

* हिन्दूत्व और भारतीयता के छन्द व गीत सुनाने वाली स्वभाव से सरल व आयोजक के लिए सदैव विनम्र - मंच पर मेहनत करने वाली कवयित्री - कोई व्यसन नहीं - मॊलिक हैं पर बहक जाए तो चुटकुले भी सुना सकती है
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नरेन्द्र बन्जारा - मुंबई 20,000+

* युवा लेकिन परिपक्व कलमकार, मंच पर सहयोगी कवियों को प्रोत्साहन और तालियां देने में कुशल, मौलिक रचनाकार - चुटकुलों के चक्कर में न पड़े तो बढ़िया जमता है
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अशोक चारण - जयपुर 15,000+

* राष्ट्रवादी कविताओं के बल पर खूब जमने वाला युवा लेकिन परिपक्व कलमकार, मंच पर सहयोगी कवियों को प्रोत्साहन और तालियां देने में कुशल - कोई व्यसन नहीं
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शशिकांत यादव - देवास 25,000+ वांछित पेय पदार्थ

* धारदार टिप्पणियों और छन्दबद्ध कविताओं से दर्शकों की तालियां बजवाने में माहिर आंशिक रूप से मौलिक व प्रखर कवि - यद्यपि स्वर इनका मर्दाना नहीं है परन्तु लोग मज़ा पूरा ले लेते हैं - सुना है दूसरे संयोजको के प्रोग्राम हथियाने में इन्हें महारत हासिल है
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कमलेश शर्मा - इटावा 20,000+

* रामसेतु, हिन्दूत्व तथा राष्ट्रीय और सामाजिक विसंगतियों पर गीत सुनाते हैं मौलिक कवि हैं - व्यसन करते देखा नहीं
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योगेन्द्र शर्मा - भीलवाड़ा 15,000+

* गौभक्ति और राष्ट्रीय धारा के मौलिक कवि जो कभी कभार धुंआधार भले न जमे परन्तु अपना काम ठीक से कर लेते हैं - व्यसन से दूर
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ओमपालसिंह निडर-फ़िरोज़ाबाद 15,000+   ताज़ा एप्पल,अंगूर 
* मंच के 4 दशक पुराने दबंग हैं - श्रोता हों या न हों, कोई फ़र्क नहीं पड़ता, खाली कुर्सियों को भी जनसमूह और खाली पण्डाल को भी संसद का अशोक हॉल सनझ कर कविता  पढ़ना इन्हें आता है, ख़ूब विद्वान, ऊर्जावान  व पहलवानटाइप वक्ता हैं - शुरू हो जाए तो एक घंटा तो गला गर्म करने के लिए घनाक्षरियां सुनाते  हैं और अगर जोश में आ कर  दर्शकों ने 'जय श्रीराम' का हल्का सा भी नारा लगा दिया तो फिर माइक इनका बेटा और ये माइक के बाप ,,,,इनकी  परफॉरमेंस में खण्डिनी, मण्डिनी, पाखण्डिनी, दण्डिनी जैसे शब्द ज़रूर आते हैं - रामलहर की हवा में  सांसद भी बन गए थे - कई बार पिटे  हैं,  बहुत मार खाई है, घुटने तक तुड़वाये हैं, कविता में राम राम करते हैं  पर कवयित्रियों को देखते ही रावणत्व बाहर आ जाता है, फ्री रेलपास का दुरुपयोग करने में चैम्पियन - इन्टरनेट पर महिलाओं से जिस तरह की चैटिंग करते हैं उसे देख कर हरी ओम्म्म्म्म्म्म्म्म  हरी ओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म करने का मन करता है - विवादों में बने रहने के अलावा कोई व्यसन नहीं
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गौरव चौहान - आगरा             15,000+   

* ऊर्जा और चेतना से भरपूर एक ऐसा नया स्वर जिसमे भविष्य के लिए बड़ी सम्भावनाएं नज़र आती हैं, सरल,सहज, विनम्र और  मंच को भरपूर जमाऊ परफॉर्मेंस देने वाला ओजस्वी रचनाकार - व्यसन अभी सीखे नहीं है , नया है न ;-)
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सारस्वत मोहन मनीषी-दिल्ली  40,000+    जो मिल जाए सो ठीक  
* आर्य समाज के प्रबल पक्षधर, हिन्दूत्व और भारतीयता के गौरव को प्रतिष्ठापित करने वाले शानदार और जानदार कवि - स्वभाव से सर्द-गरम और विनम्र अहंकारी परन्तु आयोजक के लिए सदैव मंच जमाऊ, मेहनती कलमकार - आत्ममुग्धता और धन लोलुपता के अलावा कोई ख़ास व्यसन नहीं -  मॊलिक कवि हैं और प्रखर - मुखर कवि हैं, सभी विधाओं में लिखते हैं और लिखते ही रहते हैं जैसे लालू यादव के घर बच्चे पैदा होते रहते हैं, इनके घर में पांडुलिपियां बनती रहती हैं - मैंने घनाक्षरी लिखने की प्रेरणा इन्हीं से ली है - वैसे तो मेरे काव्य-गुरु हैं पर व्यवहारिकता में गुरुघंटाल हैं - शानदार व्यक्तित्व - जानदार कृतित्व
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अगली पोस्ट में भी जारी है ...
जय हिन्द !

Wednesday, November 6, 2013

यह टाइम ऐसा ही है जैसा कई साल पहले गणेशजी के दूध पीने से दूध बेचने वालों का आया था ...


प्यारे मित्रो ! 
एक मज़ेदार बात याद आ गयी ...वोह  आपसे साझा कर लेता हूँ ....

सन 1991-92 में  जयपुर समारोह के कवि सम्मेलन में बंकट बिहारी 'पागल' की अटैची उठा कर एक नया कवि आया था जो कि उस कार्यक्रम में जम नहीं सका ....दोबारा वह दो साल बाद दिखा डॉ उर्मिलेश 'शंखधर' के सौजन्य से  अहमदाबाद में जहाँ वह बुरी तरह फ्लॉप रहा और  उर्मिलेश जी की कोपदृष्टि का शिकार भी हुआ  ....तब वह मुक्तक और गीत सुनाया करता था ....लेकिन लगातार असफलता ने उसे  चुटकुले चुराना और सुनाना, दोनों एक साथ सिखा दिया .......परिणामतः वह चल निकला और हिट भी होने लगा ....हास्यकवि सम्मेलनो के सबसे बड़े संयोजक और मंच संचालक हास्यसम्राट डॉ रामरिख मनहर के निधन से देश के काव्य-मंचों पर एक धुआंधार मंच संचालक  की जगह खाली हो गयी थी इसलिए अवसर का लाभ लेते हुए उसने संयोजन और सञ्चालन शुरू कर दिया ...सन्तोषानन्द से आत्मविश्वास, निर्भय हाथरसी  से बतरस, सत्यनारायण सत्तन से मुंहज़ोरी, सुरेन्द्र शर्मा से व्यावसायिक  कौशल, डॉ उर्मिलेश से गीत का सलीका व अन्य से अन्यान्य गुण ले ले कर उसने एक शानदार मसाला बनाया जो कि लोगों को बहुत रास आया .....एक दिन सफलता के मद में चूर हो कर वह  मुझसे बोला - "अलबेला खत्री, तुमको धन्धा करना नहीं आता ....मुझे देखो ..रोज़ प्रोग्राम कर रहा हूँ  और अपनी ही ठेकेदारी में कर रहा हूँ ...5 0 हज़ार अपने नाम से लेता हूँ  और इतने ही औरों के लिफ़ाफ़ों से निकाल लेता हूँ जबकि तुम आज भी  15 -20 हज़ार में रोते फिरते हो ............मुझे बुरा तो बहुत लगा क्योंकि मैं कविता को धन्धा नहीं अपना शौक और प्यार समझता हूँ ..........लेकिन उसे मैंने श्याम ज्वालामुखी की तरह पीटा नहीं,  केवल इतना कहा कि प्यारे भाई  मुझे इस लाइन में 2 8  साल ( 4 वर्ष पूर्व की बात है ) हो गए हैं और सिर्फ कविता के दम पर चल रहा हूँ ...जिस दिन तुम्हें इस लाइन में इतने साल हो जाएँ, उस दिन बात करेंगे  क्योंकि अभी तुम्हारा टाइम चल रहा है . यह टाइम ऐसा ही है जैसा  कई साल पहले गणेशजी के दूध पीने से दूध बेचने वालों का आया था ...एक लीटर दूध उस दिन हज़ार रुपये तक बिका था ..इसका मतलब दूध को यह नहीं लगाना चाहिए कि उसकी  कीमत हज़ार रुपये लीटर हो गयी .....हा हा हा हा

जय हिन्द !



Tuesday, November 5, 2013

क्यों साहेब, शपथ ग्रहण के समय बोधिवृक्ष के नीचे बैठाया जाता है क्या ?



कांग्रेस महासचिव श्रीमान दिग्विजयसिंहजी,
सादर नमो नमो
आपका कहना है कि ऑपिनियन पोल बकवास हैं और मज़ाक बन कर रह गए हैं . ये पैसा देकर करवाये जाते हैं  और विश्वसनीय नहीं हैं इसलिए इन्हें बंद कर देना चाहिए .......दिग्गी राजाजी, आपने यह भी  ने फ़रमाया कि मध्य प्रदेश में तीन करोड़ मतदाता  हैं  और ओपिनियन पोल कुल 2800 लोगों पर आधारित है इसलिए विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि कुल  2800 लोग, तीन करोड़ लोगों की  राय नहीं बता सकते

मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ आदरणीय, कुल  2800 लोग, तीन करोड़ लोगों की  राय हरगिज़ नहीं बता सकते परन्तु  एक शंका है मन में ...........कि जब कुल 542 लोग,  125 करोड़ लोगों का देश चला सकते हैं और उनके भाग्य का निर्णय कर सकते हैं तो महज़ एक राज्य  के चुनावी भविष्य को 2800 लोग मिल कर भी क्यों नहीं बता सकते ?

आदरणीय दिग्गी राजाजी,
क्या आप ये समझते हैं कि आम आदमी बिलकुल चूतिया होता है, उसे कोई अक्ल नहीं होती  लेकिन वही आदमी अगर  चुनाव जीत जाए तो  प्रकाण्ड विद्वान हो जाता है ...क्यों साहेब,  शपथ ग्रहण के समय बोधिवृक्ष के नीचे बैठाया जाता है क्या ?

जय हिन्द
-अलबेला खत्री
rotary club of puruliya presents kavi sammelan

albela khatri in hasyakavi sammelan at jabalpur

hasyakavi albela khatri winner of tepa award 2008



Saturday, November 2, 2013

समस्त देशवासियों को हास्यकवि अलबेला खत्री का दीपावली अभिनन्दन !


 हमारे पूरे परिवार की ओर से आपको, 

आपके परिवार को एवं आपके समस्त इष्ट मित्रों को 

दीप उत्सव की हार्दिक बधाई एवं आत्मिक शुभकामनाएं

HAPPY DEEPAVLI 2013


hasyakavi albela khatri wish you very happy deepavli 2013

hasyakavi albela khatri wish you very happy deepavli 2013
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Friday, November 1, 2013

दीपावली की रात अलबेला खत्री के साथ देखिये वाह वाह क्या बात है



अभी अभी मुम्बई में  सब टी वी के "वाह वाह क्या बात है" में  दीपावली 


स्पैशल एपीसोड  की शूटिंग करके लौटा हूँ  परन्तु इस बार उतना आनन्दित 

नहीं हूँ जितना  अक्सर हुआ करता हूँ . कारण  नहीं बताऊंगा, क्योंकि कारण  

बताऊंगा तो मुझे बताते हुए और आपको बांचते हुए तकलीफ़ होगी ..........

इसलिए अपना दिल कहता है 

SHOW MUST GO ON !  

सूत्रों द्वारा बताया गया है कि  यह दीपावली  अर्थात 3 नवम्बर की रात 9  बजे 


दिखाया जाएगा ...किन्तु  अभी पक्का  पता नहीं कि कब दिखाया जाएगा ...

वैसे दीपावली का था तो दीपावली पर दिखाएंगे ....क्योंकि ब्याह के गीत ब्याह 

में ही गाए जाते हैं और तीज के घेवर तीज को ही खाये जाते हैं हा हा हा हा :-)


HAPPY  DEEPAVLI

जय हिन्द !
-अलबेला खत्री 

waah waah kya baat hai with hasyakavi albela khatri

waah waah kya baat hai with hasyakavi albela khatri

waah waah kya baat hai with hasyakavi albela khatri