Thursday, October 17, 2013

अब क्या करूँ ? धन्यवाद दूं इस चोरी के लिए या विरोध करूँ ?


अपनी चोरविद्या  में संत तरुण सागर जी को क्यों शामिल करते हो भाई पाठक जी ?

मेरी एक साधारण सी कविता जो कि संयोग से बहुत प्रसिद्ध हो गयी है आजकल कई लोग उसे अपने काम में ले रहे हैं . कितने ही पोस्टर में वह छप चुकी है और गाहे ब गाहे कुछ लोग मंच पर भी सुना देते हैं  लेकिन  हद तो तब हो जाती है जब मेरी कविता को संत पुरुषों के सन्देश में ढाल कर उन्हीं की कविता बता दिया जाता है

ऐसा ही एक उदाहरण आप देख रहे हैं कि भास्कर अख़बार में किसी पाठक ने तरुण सागर जी कद नाम से छपवा रखी है ...सुना तो मैंने यहाँ तक है कि यह कविता तरुण सागर जी के कड़वे वचन नामक पुस्तक में भी प्रकाशित हो चुकी है

अब क्या करूँ ?  धन्यवाद दूं  इस चोरी के लिए  या विरोध करूँ ?

जय हिन्द ! 





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