Monday, December 16, 2013

ऐसे नहीं बनूँगा मैं आपका जमाई ! पहले आप मेरी 18 शर्तें स्वीकार करो ....



दबंगों का आपस में बड़ा घमासान मचा हुआ था. झण्डूनगर के राजा सुप्तचन्द्र की राजकन्या गुप्तचन्द्रिका से ब्याह करने के लिए अनेक युवक मरे जा रहे थे लेकिन नगर की परम्परा के अनुसार राजकन्या मिलनी उसी को थी जिसके लिए  गुप्तचन्द्रिका की माता विलुप्तचन्द्रिका व मौसी सुसुप्तचन्द्रिका समेत  अधिकांश नगरवासी  हाथ उठा कर  बहुमत में अपनी सहमति की मुहर लगा दे

संयोग से यह सौभाग्य ठण्डू  मोहल्ले के उत्साही नौजवान चण्डू चटोरकर को मिला जिसने स्वयंवर के दौरान घोषणा की थी कि यदि राजकन्या का ब्याह उससे हो गया तो वह झण्डू नगर के हर नागरिक को उसके साथ  एक रात आनन्द करने का अवसर देगा, साथ ही रोज़ाना  700 लीटर पानी भी मुफ्त में लाकर देगा. झण्डूनगर के सारे ठरकी मन ही मन खुश थे कि भले एक रात के लिए ही सही, जन्नत की सैर तो मिलेगी ………लेकिन ये क्या ?  जैसे ही विजेता  के नाम की घोषणा हुई और सुप्तचन्द्र ने अपनी बेटी गुप्तचन्द्रिका का हाथ चण्डू चटोरकर के हाथ में थमाया,  उसके तेवर ही बदल गए ……बोला - ऐसे नहीं बनूँगा मैं आपका जमाई !  पहले आप मेरी 18 शर्तें स्वीकार करो तो ही मैं राजकन्या का शीलभंग करूँगा अन्यथा  रखो अपनी कन्या अपने घर .... मैं तो चला

लोगों ने कहा शर्तें बताओ तो उसने बताना शुरू किया :
01  मैं इसके साथ  सोऊंगा
02  इसे मैं मेरे घर में रखूँगा
03 ये मेरी पत्नी कहलायेगी
04 मैं इससे हर साल दस बच्चे पैदा करूँगा
05 मुझे पूर्ण पति का दर्ज़ा दिया जाएगा
06 इससे होने वाले बच्चे मेरी औलाद कहलायेंगे
07 हमारे बच्चों का नामकरण का अधिकार मेरा होगा
08 मेरी चाय में अदरक ज़रूर डालनी होगी
09 मैं जब भी शराब पीकर आऊं, मुझे गटर में गिरने से न रोका जाए
10 सर्दी में हम दोनों को एक ही रज़ाई ओढ़ कर सोना होगा
11 सब्ज़ी वही बनेगी, जो मेरी पत्नी चाहेगी
12 राजकन्या को कभी कभी नए वस्त्र और जूते दिलाये जायेंगे
13 राजकन्या चाहेगी तो ज़ेवर  भी बनाये जायेंगे
14 सुहागरात के मौके पर हमारे कमरे में हम दोनों के सिवा और कोई नहीं रहेगा
15 दहेज़ में हम जो मिलेगा उसीको  स्वीकार  करेंगे
16 घर में जमा पुराने अखबार रद्दी में बेचे जायेंगे
17 हमारे घर में धूप सिर्फ दिन में रहेगी,  रात को अँधेरा स्वीकार करना होगा
18 राजकन्या को जनराजकन्या का नाम दिया जाएगा

यह सुन कर सुप्तचन्द्र ने अपनी राजकन्या का हाथ वापिस उसके हाथ से ले लिया और बोले - जा बे चूतिये ! तेरे जैसे कई फिरते हैं टोपी लगाए .... एक तो तेरे को मेरी वो रूपसी राजकन्या मिल रही है जिसके लिए तू  तड़प रहा था, बोनस में पूरे नगर का समर्थन मिल रहा है, उस पर तू ऐसी शर्तें लगा रहा है  जिससे हमारा कोई लेना देना ही नहीं .... जा भाग जा …स्वयंवर  दोबारा होगा  और अब किसी ढंग के  आदमी को ही अपनी बेटी का हाथ दूंगा

चण्डू चटोरकर का मुंह अब देखने लायक था

-अलबेला खत्री


1 comment:

  1. लेकिन अब भाजपा र कांग्रेस का मुंह देखने लायक भी नहीं रहा।

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