Thursday, December 19, 2013

सांपला सांस्कृतिक मंच वालो ! मुझे ख़ुशी है कि अब तुम पूरे हुशियार हो गए हो.……



स्नेही बन्धु अन्तर सोहेल जी,
संस्थापक, सांपला सांस्कृतिक मंच

जहाँ तक मुझे याद है, कोई चार साल पहले आपने अपने एक ब्लॉगर साथी व कविमित्र योगिन्द्र मौदगिल  के साथ विचार करके सांपला नगर में एक हास्य कवि-सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई  थी लेकिन तब आप इस बात से बिलकुल अनजान थे कि कवि सम्मेलन क्या होता है, उसमें क्या क्या व्यवस्थायें करनी पड़ती हैं और कितना खर्च आता है ? लेकिन आपके पास योगिन्द्र मौदगिल और अलबेला खत्री  जैसे दो मंचीय दोस्त थे  जिनके बल पर आप यह हिम्मत कर  रहे थे 

आयोजन करने के लिए  आपके पास न पैसा था  और न ही कोई अन्य सुविधा, परन्तु आपने अपने कविमित्रों से यह कहा था कि एक बार मुझे सहयोग करो, क्योंकि  ये पहला पहला मामला है और आपके सहयोग से मैं इस शहर  में कवि सम्मेलन का बीजारोपण करना चाहता हूँ - अगर प्रोग्राम हिट हो गया तो बाद में हर साल करते रहेंगे - चूँकि हम भावुक के अलावा आपके मित्र भी थे  इसलिए  हमने हाँ भर दी

तब आपने दोस्ती खाते में केवल किराया भाड़ा के एवज़ में  कुछ  कवि बुला कर सांपला नगर में पहला कवि सम्मेलन  किया जो कि कवियों की मेहनत और प्रतिभा के कारण  अत्यंत सफल रहा - उल्लेखनीय है कि उस प्रोग्राम में सारे कवियों ने आर्थिक समझोता इसलिए किया था क्योंकि सबको योगिन्द्र भाई  ने अपना वास्ता दिया था  साथ ही अलबेला खत्री का भी मन था कि अपने ब्लॉगर बन्धु  की जय जय करवाये. इसलिए  31 दिसम्बर का इरोड का तयशुदा प्रोग्राम रद्द करके भी वह सांपला इसलिए आया था  ताकि  एक नए कवि सम्मेलन के जन्म का साक्षी बन सके .  वह प्रोग्राम 1 जनवरी 2011 की ठण्डी रात में था और आपके पास गर्म पानी तक की व्यवस्था नहीं थी  लेकिन किसी ने कोई अडंगा नहीं लगाया सभी ने बढ़िया प्रोग्राम जमाया

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चूँकि पहला प्रोग्राम इतना ज़यादा हिट हो गया था कि पब्लिक की डिमाण्ड पर और पर्याप्त जनसहयोग के दम पर आपने एक साल पूरा होने के पहले ही  दूसरा कवि सम्मेलन कर लिया  जिसमें नाम मात्र की राशि कवियों को दी थी - उस कवि सम्मेलन में मौसम और बद इन्तेज़ामी के चलते कवियों को बहुत परेशानी हुई लेकिन सब सह कर भी उनहोंने  आपको सहयोग किया  और प्रोग्राम हिट किया


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इसके बाद आपको लगने लगा कि कवि सम्मेलन करके तो पैसा भी बचाया जा सकता है - लेकिन पैसा तभी बचेगा जब कवि सम्मेलन में ऐसे कवियों का नाम हो जो पहले नहीं आये हों क्योंकि जो लोग पहले फ़ोकट में या कम मानधन पर आ चुके हैं उनके नाम पर तो बड़ा खर्च दिखाया नहीं जा सकता।  लिहाज़ा आपने टीम बदल कर प्रयोग किया

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और अब आपका अनुभव इतना बढ़ गया है कि  पैसा कमाने के फेर में आप अपने चौथे कवि सम्मेलन में फिर ऐसे ही  कवियों को बुला रहे हैं  जिनके नाम पर बड़ा खर्च दिखाया जा सके


मुझे सिर्फ़  इतना कहना  है कि पहली पहली बार जो कवि  आये थे वो भी कोई छोटे कवि  नहीं थे, बल्कि वो तो इसलिए भी ज़यादा बड़े कवि थे क्योंकि उनकी मेंहनत  और क़ुर्बानी के दम पर ही सांपला में कवि सम्मेलन का आयोजन स्थापित हुआ,  जिनकी पीठ पर चढ़ कर यहाँ तक पहुंचे हो कभी उनके प्रति कृतज्ञता का भाव मत भूलना


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जिन परिस्थितियों में, जिस धर्मशाला में, जिन व्यवस्थाओं के  बीच  एडजस्ट करके योगिन्द्र मौदगिल और अलबेला खत्री ने आपको और आपके आयोजन को सफल किया था  वैसी स्थिति में कोई दूसरा एडजस्ट नहीं करेगा  - हमने तो केवल एक सांस्कृतिक हलचल ज़िन्दा करने के लिए अपना नुक्सान करके भी आपको ऊर्जा दी थी …………हमें नहीं मालूम था कि आप हमारे यज्ञ स्थल पर ऐसी झाड़ू मारोगे

प्यारे भाई, सभी कवि हमारे अपने हैं, हमारे मित्र हैं, सभी आपस में एक परिवार की भांति हैं, जो भी आपके शहर में  आएगा वोह अपनी वाणी से धूम मचाएगा और आपका कार्यक्रम सफल ही होगा, हमें किसी से भी कोई दुर्भाव नहीं हैं  लेकिन तक़लीफ़ इस बात की है कि जब कुछ नहीं था तब आपने अपने मित्रों का इस्तेमाल किया, उनके ज़रिये रुपये का माल चवन्नी में प्राप्त किया और जब आपकी जेब में रुपया आ गया तो दोस्त का नाम दिमाग से निकल गया





नोट : यह किस्सा केवल सांपला का नहीं है, सांपला तो एक माध्यम बन गया है ……………इस आलेख के ज़रिये मैं पूरे देश के आयोजकों को यह सन्देश देना चाहता हूँ कि  जिन लोगों के सहयोग से आपने आयोजन खड़े किये हैं उन्हें कभी भूलना नहीं

जय हिन्द !
अलबेला खत्री












1 comment:

  1. बहुत इमोशनल अपील है ! आपके दर्द को समझ सकता हूँ !

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