Tuesday, November 26, 2013

कविताओं की चोरी हो या हो दैहिक गठबन्धन - चलने दो, आवाज़ उठाना महंगा पड़ता है



दिल की बात ज़ुबाँ पर लाना महँगा पड़ता है
लाख के घर में जोत जगाना महंगा पड़ता है



सर से जब लोहू निकला तो बात समझ में आई
दीवारों से सर टकराना महंगा पड़ता है



कविताओं की चोरी हो या हो दैहिक गठबन्धन
चलने दो,  आवाज़ उठाना महंगा पड़ता है



ग़ज़लें गर लिखवाई हैं, तारीखें भी लिखवाओ
शंखधरों को शंख बजाना महंगा पड़ता है 



आम आम की माला जप कर वो जो ख़ास हुआ है
उसको फिर से आम बनाना महंगा पड़ता है 




भैंस के आगे बीन बजाना चल जाता 'अलबेला'
बीन से लेकिन  भैंस बजाना महंगा पड़ता है



जय हिन्द !
अलबेला खत्री 

albela khatri in kavi sammelan at juhari devi girls p g college kanpur on 24-11-13

1 comment:

  1. कविताओं की चोरी हो या हो दैहिक गठबन्धन
    चलने दो, आवाज़ उठाना महंगा पड़ता है

    समय का सच

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