Thursday, January 16, 2014

कभी-कभी डरता हूँ .... और बड़ा होऊं कि न होऊं ?

समय बदलता है
तो लोगों की बात-चीत का सन्दर्भ भी बदल जाता है

मैं जब छोटा सा था तो चर्चा के विषय होते थे :
धर्म
कर्म
मर्म
शर्म इत्यादि

मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो वार्ता के बिन्दु होते :
जवान
किसान
विज्ञान
दुकान
मकान वगैरह

मैं थोड़ा और बड़ा हुआ तो बात-चीत के सन्दर्भ होते :
समाजवाद
पूंजीवाद
राष्ट्रवाद
उग्रवाद
आतंकवाद
नक्सलवाद
और
वाद विवाद

कुछ और बड़ा हुआ मैं तो बातें होने लगीं :
टैक्स की
फैक्स की
वैक्स की
सेक्स की
और
सेंसेक्स की

आजकल चर्चा के प्रसंग हैं :
रैंगिंग
गैंगिंग
हैंगिंग
और
समलैंगिंग

कभी-कभी डरता हूँ ....
और बड़ा होऊं कि न होऊं ?
पता नहीं आने वाला कल किस विषय पर चर्चा करेगा ?

फिर सोचता हूँ ...इतना सब देखा और झेला है
तो आगे भी देख लेंगे ...
अपन कोई डरते हैं क्या .......हा हा हा हा हा हा हा हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 





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