कविता किसी भी रस की हो अथवा कवि किसी भी रस में सृजन करे, अपेक्षा केवल इतनी होनी चाहिए कि कथ्य व चिन्तन मौलिक, प्रभावशाली और सरस हो ,,,,,,,,,,,,न वीर रस ऊंच है, न ही हास्य नीच ,,,,,सबका अपना महत्व है ,,,और फिर वीरों से ज़ियादह हँस ही कौन सकता है ,,,सरहद पर जवान जब शहीद होता है तो रोते रोते नहीं बल्कि हँसते हँसते होता है और इसलिए शहीद होता है ताकि ये देश हँसता रहे , देशवासियों के घर-आँगन खिलखिलाते रहें - तो हास्य कवि -सम्मेलन का आयोजन वीर शहीदों के लिए श्रद्धान्जलि जैसा होता है
मेरा मानना है कि कवि तो किसी भी रस का चलेगा लेकिन आदमी वीररस का होना चाहिए
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
my dear frind d v patel & mrs. kailasben d patel from nashville tn |
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